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अगस्त १९, २०२१

प्रेस विज्ञप्ति

आयुष के पूर्ण एवं प्रभावी उपयोग के लिये वैज्ञानिकों एवं वैद्यों की
प्रधानमंत्री से विनति

लगभग ७०० वैज्ञानिकों, इंजीनियरों एवं आयुष चिकित्सकों ने प्रधानमंत्री के नाम एक विनति-पत्र भेज कर कोविड-१९ के प्रतिरोध एवं चिकित्सा के लिये देशज पद्धतियों का पूर्ण एवं प्रभावी उपयोग करने का आग्रह किया है। यह विनति वैज्ञानिकों एवं इंजीनियरों के एक समूह पी.पी.एस.टी. की पहल पर हुई है। विनति पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में ३ पद्मभूषण एवं ११ पद्मश्री से सम्मानित हैं।

हस्ताक्षरकर्ताओं में २१० विज्ञान एवं अभियांत्रिकी से जुड़े विषयों में पी.एच.डी. हैं और ३०० देशज पद्धतियों के वैद्य हैं। इन वैद्यों में ४६ तमिलनाडु की सिद्ध पद्धति के विशेषज्ञ भी हैं। देश के सब भागों में छोटे-छोटे उपनगरों तक में चिकित्सा सेवाएँ दे रहे वैद्यों ने इस विनतिपत्र में सहयोग किया है। इनमें अनेक ऐसे हैं जिन्होंने कोविड-काल में स्वयं कोविड-रोगियों का उपचार देशज पद्धतियों से किया है। आधुनिक पद्धति के प्रायः २० डॉक्टरों ने भी इस विनति से सहमति जतायी है।

हस्ताक्षरकर्ताओं में बहुत से अपने-अपने क्षेत्रों के अग्रणी विशेषज्ञ हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के उच्च संस्थानों के वर्तमान एवं सेवा-निवृत्त निदेशक एवं विशिष्ट प्राचार्य और भारत एवं राज्य सरकारों के सचिव एवं प्रधानसचिव स्तर तक के पदों पर रह चुके अनेक महत्त्वपूर्ण लोग इस विनति से जुड़े हैं।

इस विनति-पत्र में कोविड के प्रतिरोध एवं उपचार के लिये आयुष पर आधारित अनेक व्यापक एवं सफल प्रयासों का उल्लेख किया गया है। ये प्रयास राजकीय एवं निजी दोनों स्तर पर हुए हैं और इनसे देशज उपचारों की सुरक्षा एवं सफलता संबंधी प्रमाण मिले हैं वे आयुष मंत्रालय को उपलब्ध हैं। विनति-पत्र में कहा गया है कि इन प्रयासों की सफलता के परिप्रेक्ष्य में देशज चिकित्सा-पद्धतियों को भारत की सामान्य चिकित्सा व्यवस्थाओं में औपचारिक स्थान देने पर विचार करना आवश्यक है। ऐसा करने पर रोगियों को सब उपलब्ध उपचारों का लाभ मिल पायेगा। देश की चिकित्सा व्यवस्थाओं में गुणात्मक सुधार की संभावना बनेगी। देशज वैद्यकी ज्ञान का पूरा उपयोग हो पायेगा एवं एक एकीकृत चिकित्सा व्यवस्था की स्थापना हो पायेगी। बड़े स्तर पर देशज पद्धतियों के उपयोग से देशज चिकित्सा प्रणालियों के सुरक्षित एवं प्रभावी होने संबंधी वैज्ञानिक रीति से बड़े स्तर पर प्रमाण एकतृत हो पायेंगे और देशज पद्धतियों को देश-विदेश में सम्मान प्राप्त होगा।

इस विनति के संयोजक पी.पी.एस.टी. (पेट्रियॉटिक एवं पीपुल-ओरिएण्टड विज्ञान एवं तकनीकी) समूह की स्थापना १९८० के दशक में कुछ वैज्ञानिकों एवं इंजीनियरों ने देश में विज्ञान-तकनीक को अधिक सक्षम एवं भारतीय आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने के लिये की थी। इस विषय पर विचार करते हुए वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि भारतीय विज्ञान-तकनीक को भारत के अनुरूप ढालने एवं भारतीय आवश्यकताओं के प्रति सजग बनाने के लिये भारत की विज्ञान-तकनीक की परंपराओं के साथ जुड़ना आवश्यक है। पिछले चार दशकों में इस समूह के सदस्यों ने विभिन्न क्षेत्रों में भारत की विज्ञान एवं तकनीक की परंपराओं पर गहन अध्ययन किया है।

इस विनति-पत्र पर जिस प्रकार की प्रतिक्रियाएँ आयी हैं, उनसे ऐसा प्रतीत होता है कि भारत के उच्च वैज्ञानिकों, इंजीनियरों एवं उच्च नीति-निर्धारकों में देशज पद्धतियों को जोड़कर भारत में एकीकृत चिकित्सा प्रणाली की स्थापना किये जाने के पक्ष में गहन भावना है। यह भावना महामारी के इस काल में और गहन हुई है। यह भावना भी है कि प्रत्येक आपत्-काल राष्ट्र के लिये नयी संभावनाएँ भी प्रस्तुत करता है। कोविड ने हमें देशज चिकित्सा पद्धतियों के प्रभाव को प्रमाणित करने एवं भारत में एकीकृत चिकित्सा व्यवस्था स्थापित करने का विशेष अवसर दिया है। हमें इस अवसर को कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार कर सब आवश्यक व्यवस्थाएँ करनी चाहियें

पी.एल.टी. गिरिजा

संजीवनी आयुर्वेद वैद्यशाला

१/१३४ गंगैअम्मन् कोविल् तेरु

इञ्जम्बाक्कम्, चेन्नै ६००११५

मो: ९५००० ७१३३२, ई-मेल: pltgirija@gmail.com

 

 

[डा. पी.एल.टी. गिरिजा ने कोविड काल में प्रायः ६०० कोविड रोगियों की सफल चिकित्सा की है। इनमें से अनेक गंभीर सह-रोगों से ग्रस्त थे। उनके उपचार के विषय में विस्तृत जानकारी देश के बड़ी शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई है।]

 

संलग्नक

  1. माननीय प्रधानमंत्री को भेजा गया विनति-पत्र।

  2. हस्ताक्षरकर्ताओं की सूचि (अंग्रेजी में)।

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