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माननीय प्रधानमंत्री से सादर विनति
१६ अगस्त २०२१

देश में कोविड-१९ की रोकथाम एवं चिकित्सा में
देशज पद्धतियों के पूर्ण एवं प्रभावी उपयोग
की व्यवस्था करने हेतु

पिछले एक वर्ष से अधिक के काल में, जब से कोविड की भयंकर महामारी हमारे बीच आयी है, तब से इस रोग के प्रतिरोध एवं चिकित्सा के लिये आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी एवं अन्य देशज वैद्यकीय विधाओं का छोटे-बड़े स्तर पर अत्यंत व्यापक उपयोग देश में हो रहा है। इस संबंध में आयुष मंत्रालय और उसके अधीन आने वाले संस्थानों द्वारा जो आंकड़े एकत्रित किये गये हैं उनसे इन देशज चिकित्साओं की व्यापकता और उनके सकारात्मक प्रभाव का एक विशद चित्र उभरता है।

जो अनेक प्रयोग आयुष मंत्रालय के माध्यम से हुए उनमें से दो विशेष उल्लेखनीय हैं –

  1. दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान ने आयुष रक्षा के नाम से दिल्ली पुलिस के साथ मिल कर एक बड़ा अपक्रम किया। दिल्ली पुलिस के ८०,००० जवानों एवं अधिकारियों के मध्य तीन चरणों में आयुर्वेदीय औषधियों का एक संच वितरित किया गया। आयुर्वेदिक औषधियों की प्रतिरोधात्मक क्षमता का आकलन करने के लिये इस उपक्रम के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पाया गया कि दिल्ली पुलिस का वयानुसार मृत्यु-प्रमाण दिल्ली की जनसंख्या की अपेक्षा अर्थपूर्ण स्तर पर अल्प था। १५ जून २०२० को इस उपक्रम के प्रारंभ के पश्चात् दिल्ली पुलिस में कोविड से ग्रसित होने का प्रमाण घटने लगा जबकि उसी काल में दिल्ली की सामान्य जनसंख्या में यह प्रमाण बढ़ कर शीर्ष पर पहुँच रहा था। अन्य राज्यों के पुलिस बलों की अपेक्षा भी दिल्ली पुलिस में कोविड से ग्रसित होने का प्रमाण पर्याप्त अल्प रहा। ऐसे ही, दिल्ली पुलिस में मृत्यु का प्रमाण भी अन्य राज्यों के पुलिस दलों की अपेक्षा बहुत नीचे रहा।

  2. दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान के कोरोना वार्ड में ११ महीनों में प्रायः ६०० रोगी दाखिल किये गये। रेफरल के आंकड़ों को छोड़ कर अन्य रोगियों में रोगी के पूर्णतः स्वस्थ होने का प्रमाण ९९.५ प्रतिशत रहा।

दोनों उपक्रमों का ऊपर दिया गया विवरण अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान द्वारा प्रकाशित सामग्री के अनुसार है।[1]

 

इन राजकीय प्रयासों के अतिरिक्त भी अनेक स्थानों पर आयुर्वेदीय एवं अन्य देशज चिकित्सकों ने बड़ी संख्या में कोविड रोगियों की सफल चिकित्सा की है। इस क्रम में एक विशेष सफल एवं उल्लेखनीय प्रयास चेन्नै की एक वैद्य का है। उसने ६०० कोविड रोगियों का उपचार किया और उन सब रोगियों का व्यवस्थित लिखित विवरण रखा है। इन ६०० रोगियों में से अनेकों में गंभीर सह-रुग्णता उपस्थित थी। इस प्रयास के पहले १६७ रोगियों संबंधी विस्तृत आंकड़े आजकी वैज्ञानिक पद्धति से संकलित किये गये हैं और ये Journal of Ayurveda and Integrative Medicine के एक सद्य-प्रकाशित अंक में छपे हैं। [­2] इस शोध-पत्र में जिन १६७ रोगियों का विवरण छपा है उसमें २१ ऐसे रोगियों को नहीं जोड़ा गया जो प्रारंभिक चरणों में ही चिकित्सा छोड़ गये थे। चिकित्सा छोड़ने का कारण मुख्यतः उनके अथवा उनके परिजनों द्वारा अंतरंग (इन-पेशेंट) चिकित्सा करवाने का आग्रह था। जिन १६७ की चिकित्सा बाह्यरोगी के रूप में की गयी वे सब पूर्ण स्वस्थ हुए। इनमें से जो रोगी गंभीर सहरुग्णता से ग्रस्त थे, उनका विवरण इसी शोध-पत्रिका के एक अन्य अंक में छपा है। [­3]

देशज वैद्यों द्वारा अनेक अन्य बड़े एवं सफल प्रयासों की सूचनाएँ आती रहती हैं। तमिलनाडु में सिद्ध पद्धति पर आधारित २९ कोविड चिकित्सा केंद्र सफलतापूर्वक चल रहे हैं। इन २९ केंद्रों की कुल क्षमता ४,२०० रोगियों की अंतरंग देखभाल करने की है। तमिलनाडु के एक सम्मानित सिद्ध वैद्य ने कोविड काल में ८७० रोगियों की चिकित्सा की है और इनमें से केवल ५ ऐसे थे जिन्हें वे बचा नहीं पाये। बेंगलूरु की एक वैद्य ने ४०० कोविड रोगियों की सफल चिकित्सा की है और इनका लिखित विवरण रखा है।

मेरठ के एक आधुनिक अस्पताल में वरिष्ठ वैद्यों के सहयोग से कोविड रोगियों को एकीकृत आधुनिक एवं आयुर्वेदीय चिकित्सा उपलब्ध करवायी जा रही है। वहाँ सघन चिकित्सा इकाईयों (इंटेंसिव केयर यूनिटस) में भी एकीकृत चिकित्सा दी जा रही है और अस्पताल के अनुसार एकीकृत चिकित्सा पाने वाले रोगियों के परिणाम सामान्य आधुनिक चिकित्सा पाने वाले रोगियों की अपेक्षा संख्यात्मक विश्लेषण के आधार पर कहीं अच्छे दिखायी दे रहे हैं।

 

देशज चिकित्सकों द्वारा किये गये उपर्लिखित एवं अन्य अनेक प्रयासों की विस्तृत जानकारी आयुष मंत्रालय के पास तो उपलब्ध है ही।

 

हम यह स्वीकार करते हैं कि आयुर्वेदीय एवं अन्य देशज उपचारों की कोविड रोग में उपादेयता की ओर इंगित करने वाले इन सब प्रयासों को आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से पूर्णतः मान्य नहीं माना जा सकता। इस सबमें आयुर्वेद की चिकित्सा पाने वाले और वैसी चिकित्सा न पाने वाले लोगों का तुलनात्मक अध्ययन बहुत नहीं हो पाया। पर तुलनात्मक अध्ययन न होने पर भी इन व्यापक प्रयासों से उपलब्ध जानकारी के आधार पर निम्न दो निष्कर्ष तो स्पष्ट निकलते हैं –

  1. आयुर्वेदीय एवं अन्य देशज उपचार सुरक्षित हैं। बड़ी संख्या में जिन रोगियों को ऐसी चिकित्सा दी गयी उनमें से किसी को उपचार के कारण कोई समस्या नहीं आयी। वैसे भी कोविड के देशज उपचार में उपयोग की जाने वाली औषधियाँ और प्रक्रियाएँ देशज चिकित्सा के विस्तृत साहित्य पर आधारित हैं और इनका दीर्घ काल से व्यापक उपयोग होता चला आया है। इसलिये चिकित्सीय उपयोग में इन औषधियों एवं प्रक्रियाओं की सुरक्षा स्थापित ही है।

  2. ऊपर दिये गये व्यापक उपक्रमों में देशज औषधियों का सेवन करने वालों में कोविड संक्रमण का प्रमाण सामान्य की अपेक्षा कहीं अल्प पाया गया है। इसी प्रकार देशज चिकित्सा पाने वाले कोविड-संक्रमित रोगियों में मृत्यु की संभावना का प्रमाण सामान्य की अपेक्षा अल्प है। इन प्रयासों के आधार पर वैज्ञानिक दृष्टि से निश्चित निष्कर्ष निकालना उपयुक्त न भी हो तो भी चिकित्सा के सुरक्षित एवं प्रभावी होने की संभावना का स्पष्ट संकेत तो इन प्रयासों में दिखता ही है।

जब किसी नये रोग की कोई विशिष्ट दवा उपलब्ध नहीं होती तो किसी नयी चिकित्सा से यही दो अपेक्षाएँ रखी जाती हैं – चिकित्सा सुरक्षित हो और उसके प्रभावी होने की संभावना दिखायी जा सकती हो। कोविड रोग में आधुनिक पद्धति की नयी चिकित्साओं के आपातकालीन उपयोग की अनुमति इन्हीं दो आधारों पर दी गयी है। इस काल में जिन चिकित्साओं का व्यापक उपयोग करने की अनुमति दी गयी है उनमें से कुछ के लिये तो उनकी उपादेयता की इतनी संभावना भी व्यवहार में नहीं दिखायी गयी थी।

 

आयुष मंत्रालय द्वारा संकलित आंकड़ों और विभिन्न देशज चिकित्सा पद्धतियों के अनेक वरिष्ठ वैद्यों के व्यापक अनुभव के आधार पर देशज प्रतिरोधात्मक एवं चिकित्सीय दोनों उपचारों को बड़े स्तर पर उपयोग की अनुमति मिलनी चाहिये और ऐसे उपचारों की सार्वजनिक व्यवस्था होनी चाहिये। ऐसा न करना रोगियों को सहज उपलब्ध सुरक्षित एवं संभवतः प्रभावकारी चिकित्सा से वञ्चित रखने जैसा है ।

 

उपरोक्त के परिप्रेक्ष्य में हमारा माननीय प्रधानमंत्री महोदय से निवेदन है कि –

  1. कोविड के लिये देशज प्रतिरोधात्मक उपचार सब सार्वजनिक अस्पतालों, प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों और अन्य सरकारी संस्थानों में सर्वसुलभ हो और इनका विभिन्न माध्यमों से व्यापक वितरण किया जाये।

  2. कोविड रोगियों का उपचार करने वाले सब राजकीय अस्पतालों और विशेषतः जिला-स्तर के सब चिकित्सालयों में कोविड रोगियों को सामान्य आधुनिक चिकित्सा के साथ-साथ आयुष मंत्रालय द्वारा निश्चित पद्धति (प्रोटोकोल) के अनुसार एवं प्रशिक्षित देशज चिकित्सकों की देख-रेख में पूरक देशज उपचार का विकल्प उपलब्ध करवाया जाये। । इसके लिये प्रत्येक जिला स्तर के अस्पताल के साथ अपेक्षित संख्या में प्रशिक्षित देशज चिकित्सकों को संलग्न किया जाये।

  3. प्रत्येक वार्ड में आने वाले कुल रोगियों में से यादृच्छिक पद्धति से एवं रोगियों की सहमति के आधार पर १०-२० प्रतिशत को चुनकर उन्हें पूर्णतः (स्टैंड अलोन) देशज उपचार पर रखा जाये। ऐसे रोगियों को यह आश्वासन रहना चाहिये कि आयुष एवं स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा पूर्वनिश्चित मापदण्डों के अनुसार आवश्यक होने पर उन्हें तुरंत सामान्य आधुनिक चिकित्सा उपलब्ध करवायी जायेगी।

  4. उपरोक्त व्यवस्थाओं के समुचित निरीक्षण और आंकड़ों के समुचित संकलन के लिये आयुष एवं स्वास्थ्य मंत्रालय के सम्मिलित उपक्रम से ऐसा समुचित सॉफ्टवेयर बनाया जाये जिसके माध्यम से प्रत्येक वार्ड के प्रभारी चिकित्सक रोगियों की चिकित्सा संबंधी सभी आवश्यक आंकड़ों को एक एकीकृत केंद्रीय प्रणाली में जोड़ते चले जायें। इसके लिये सब वार्डों में संगणक एवं ब्रॉडबैंड आदि की समुचित व्यवस्था की जाये। इससे जिला एवं उससे नीचे के स्तर तक की चिकित्सा व्यवस्था का डिजिटल उन्नयन भी हो जायेगा जो अन्य परिस्थितियों में भी उपयोगी रहेगा।

ये व्यवस्थाएँ वर्तमान राष्ट्रीय आयुष मिशन के विस्तार के रूप में की जी सकती हैं। इन व्यस्थाओं से समस्त कोविड-रोगियों को पूरक देशज चिकित्सा का लाभ पाने और उनमें से १०-२० प्रतिशत को पूर्णतः देशज पद्धति से चिकित्सा करवाने का विकल्प प्राप्त हो पायेगा। इस प्रक्रिया में प्रशिक्षित देशज वैदकीय चिकित्सकों की बड़ी संख्या के कौशल एवं विशेषज्ञता का एवं भारत की महती वैद्यकीय धरोहर का उपयोग भी कोविड से मुक्ति के राष्ट्रीय कार्य में हो जायेगा।

 

साथ-ही कुछ ही महीनों में देशज चिकित्सा के पूरक और एकल (स्टैंडअलोन) दोनों रूपों में प्रभावी होने संबंधी बहुत बड़ा डेटाबेस उपलब्ध हो जायेगा। इस प्रक्रिया में यदि देशज चिकित्सा का प्रभाव इतने व्यापक स्तर पर स्थापित हो जाता है, जो होना प्रायः निश्चित है, तो भारत की चिकित्सकीय परंपराओं की गरिमा विश्व में एक नये ही स्तर पर पहुँच जायेगी।

 

इन व्यवस्थाओं से आधुनिक एवं देशज चिकित्सा में तालमेल बैठाने और दोनों का एकीकृत प्रयोग करने का मार्ग प्रशस्त होगी जिससे भविष्य में भारत की चिकित्सा व्यवस्था के उन्नयन की संभावना बनेगी।

 

बड़ी विपत्ति के समय बड़े काम किये जाते हैं। कोविड विपत्ति का समय है, पर इस विपत्ति ने हमें यह अवसर भी दिया है कि हम देशज चिकित्सा की क्षमताओं का बड़े स्तर पर उपयोग कर पायें, उन क्षमताओं को वैज्ञानिक पद्धति से स्थापित कर पायें और भारत की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में आधुनिक एवं देशज पद्धतियों के एक-दूसरे के पूरक बनने का मार्ग प्रशस्त कर पायें। इस अवसर का पूरा लाभ उठाना अपेक्षित है।

  1. Nesari TM. Integration of Ayurveda in COVID-19 management: Need of an hour. J Ayurveda Case Rep [serial online] 2021 [cited 2021 Jul 5]; 4:1-2. Available from:
    http://www.ayucare.org/text.asp?2021/4/1/1/318661

  2. P.L.T. Girija, Nithya Sivan, Yamini Agalya Murugavel, Pallavi Naik, T.M. Mukundan, Monica Duraikannan, “Standalone Ayurvedic Intervention with Home Quarantine in COVID-19 -  Outcomes of Clinical Practice”, Journal of Ayurveda and Integrative Medicine, 2021;04-15. Available from: https://doi.org/10.1016/j.jaim.2021.04.015

  3. P.L.T. Girija, Nithya Sivan, Pallavi Naik, Yamini Agalya Murugavel, M. Ravindranath Thyyar, C.V. Krishnaswami, “Standalone Ayurvedic treatment of high-risk COVID-19 patients with multiple comorbidities: A case series”, Journal of Ayurveda and Integrative Medicine, 2021;06-06. Available at: https://doi.org/10.1016/j.jaim.2021.06.006

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